Monday, April 27, 2020

ख़ुशी- ख़ुशी दुःख बयां करने वाले देव आनंद

बॉलीवुड में कई ऐसे गीत हुए हैं जो ग़म से भरे हुए हैं ऐसी कई परिस्थितियाँ बॉलीवुड की फ़िल्मों में आती रही हैं और आती रहेंगी, अब तो दुःख फ़िल्मी गीतों में बेहद ज़रूरी सा होने लगा है। लेकिन अगर दुःख भरे और उदासी भरे गीतों के बारे में सोचा जाए तो जाने क्यों याद आते हैं देव आनंद। अब आप ही सोचिए न देव आनंद किस तरह परदे पर आकर दुःख और उदासी को पल भर में काफ़ूर कर देते हैं। अब इस बात को कहने के लिए आप ये सोच सकते हैं कि देव आनंद परदे पर हमें कुछ ज़्यादा भाते हैं।

वैसे आप भी ये बात मान जाएँगे कि देव आनंद के कुछ गीत तो बिलकुल ऐसे हैं जो उदास बोलों से भरे हैं लेकिन फिर भी उन्हें देखा जाए तो मन उदास नहीं होता बल्कि ऐसा लगता है कि काश हम भी इस तरह अपनी उदासी को जी लेते। यहाँ बात  'हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ता चला गया' की नहीं हो रही है बल्कि हो रही है,  'तेरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएँ' की। एक ओर साहिर लुधियानवी के बोल जो सीधे दिल-ओ- दिमाग़ को छूते हैं और उस पर हेमंत कुमार की आवाज़ मन को मोह लेती है और उस पर देव आनंद।

यहाँ जीने से बेहतर मरने को बताया जा रहा है लेकिन ये बात इस अन्दाज़ में कही जा रही है कि ऐसी हालत में भी कोई ग़म नहीं है। एक पाइप को घर बनाकर रहने की कोशिश है और उस पर भी ये बेफ़िक्री। उस पाइप के घर से भी नज़र है सामने के घर पर जहाँ एक ख़ूबसूरत कन्या है जिस पर दिल आया है लेकिन वो भी बेगानी नज़र ही रखती है जो लाज़मी है। ऐसे में कहा जाता है "कोई तो ऐसा घर होता जहाँ से प्यार मिल जाता.." और उस पर ये कहना तो ग़ज़ब हो जाता है कि "अरे ओ आसमां वाले बता इसमें बुरा क्या है, ख़ुशी के चार झोंके भी इधर से जो गुज़र जाएँ"

कितनी सादगी से पूछा सवाल है जो शायद हर उस दिल में उठता है जो कभी किसी भी असफलता से गुज़रा है लेकिन क्या सभी के पूछने का ढंग ऐसा होता है?  बस यही बात है जो इस ग़ज़ल को ख़ास बनाती है। जी हाँ, ये गीत नहीं बल्कि एक ख़ूबसूरत ग़ज़ल है और इसके अशआर ख़ूबसूरत हैं। वैसे देव आनंद का ऐसा ही एक गीत आप सुन सकते हैं जिसे लिखा है मजरुह सुल्तानपूरी ने  फ़िल्म "बात एक रात की" और गीत "अकेला हूँ मैं, इस दुनिया में.." सुनिए ये दोनों गीत और सीखिए ज़िंदगी जीने का अन्दाज़ देव आनंद से।

चित्र- इंटरनेट से साभार 

Monday, April 20, 2020

कहानी वाक़ई फ़िल्मी होगी...

इन दिनों माहौल कुछ ऐसा है कि सभी अपने घरों में बंद हैं और ऐसे में सब अपनी कोई न कोई हॉबी तलाश रहे हैं ऐसे में एक सहकर्मी के साथ मिलकर हमने शुरू की गीतों वाली एक शृंखला जिसका नाम रखा गया “तीन तक तीन, धिन तक धिन”। जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है शृंखला गीतों से भरी है रोज़ाना ऐसे तीन गीत जिनमें कोई न कोई ख़ासियत हो। बस उनके साथ गीतों को शामिल किया जाता है। 

अब क्योंकि गीत चुनने और उनकी ख़ासियत बताने की ज़िम्मेदारी मुझ पर है तो लगा कि इन गीतों और उनकी ख़ासियत को कहीं लिखकर रखना भी सही होगा जिससे जो बातें इस शृंखला के दौरान मैं जान रही हूँ या जो बातें पिछले कुछ शोज़ के ज़रिए पहले से पता चली हैं उन्हें भी यहाँ जगह मिल जाए। तो इस तरह इन पंद्रह दिनों की शृंखला को संजोने के लिए और जो बातें समय की बाध्यता के कारण ऑडीओ क्लिप में नहीं आ पाती हैं उन्हें सुरक्षित रखने के लिए इस ब्लॉग को बनाने का विचार आया। नाम रख दिया “कहानी पूरी फ़िल्मी है...”

आज से इस ब्लॉग की शुरुआत कर रही हूँ। उम्मीद है कि पंद्रह दिन की इस शृंखला के बाद भी अपने इस ब्लॉग को समय-समय पर पर्याप्त वक़्त और पर्याप्त सामग्री दे पाऊँगी। इसके साथ ही जैसे इन दिनों सभी अपने पुराने दिनों को याद कर रहे हैं और TV पर रामायण, महाभारत, चाणक्य जैसे सीरियल देखकर एक अलग ही अनुभव कर रहे हैं वैसे ही ब्लॉग के दिनों की यादें भी इन दिनों में ताज़ा हो जाएँगी। ये तो हो गयी ब्लॉग के निर्माण की बात अब शुरू करते हैं इस ब्लॉग में जानकारियों का ख़ज़ाना भरने की कोशिश।

(फ़ोटो ख़ुद ही ली थी जब पहली और अब तक आख़िरी बार गंगा घाट जाना हुआ था..ये एक अच्छा शॉट लगता है इसलिए शुरुआत इसी से)

ख़ुशी- ख़ुशी दुःख बयां करने वाले देव आनंद

बॉलीवुड में कई ऐसे गीत हुए हैं जो ग़म से भरे हुए हैं ऐसी कई परिस्थितियाँ बॉलीवुड की फ़िल्मों में आती रही हैं और आती रहेंगी, अब तो दुःख फ़...